भारतीय विधि व्यवस्था में आम लोगों के सामने ऐसे बहुत से शब्द आते हैं, जो दो शब्द एक जैसे अर्थो के प्रतीत होते हैं, परंतु उन शब्दों के अर्थ बहुत भिन्न भिन्न होते हैं। कानूनी प्रक्रिया से दूर रहने वाले लोग या फिर ऐसे लोग जिनका न्यायालय इत्यादि से कोई काम नहीं रहा वह इन शब्दों से भ्रमित होते हैं। बहुत से लोग तो सारा जीवन उन शब्दों को पढ़ते, देखते और उपयोग करते रहते हैं, उसके पश्चात भी उन शब्दों के संबंध में उचित जानकारी नहीं रख पाते हैं। ये शब्द भ्रमित करने वाले होते हैं। आप जानकारी के अभाव में यह तय ही नहीं कर पाते कि इस व्यंजन के लिए यह शब्द होगा या फिर वह शब्द होगा, दो शब्दों के बीच भ्रम जैसा तत्व जन्म ले लेता है। कभी कभी बात भी शब्दों के बीच रह जाती है। सही अर्थ वाली बात हो ही नहीं पाती और उसके स्थान पर गलत अर्थ के शब्द को उपयोग में कर लिया जाता है। विधि के ज्ञान में विधि के शब्दों की उचित जानकारी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शब्दों का ठीक ज्ञान होना चाहिए। आम व्यक्ति से लेकर विधि व्यवसायी को भी शब्दों के ठीक अर्थों और टर्मिनोलॉजी की आवश्यकता होती है। शमनीय और गैर शमनीय- ...