मेरा दृष्टिकोण:- छल कपट के आरोपी पक्षकार शशिभूषण शुक्ला और सुधीर अग्रवाल की मुश्किलें बढ़ गयी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने विधिक मुद्दों के आधार पर हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया है। गौरतलब रहे कि, छत्तीसगढ़ के जिला बलौदाबाजार में महिर्षि महेश योगी के ट्रस्ट SRM Spiritual Regenerartion Movement Foundation of India की बलौदाबाजार स्थित दो जमींनों को गलत तरीके से रजिस्ट्री कर के हड़पने के आरोपित मामले में जिला सत्र न्यायालय बलौदाबाजार ने सुनवाई कर इन दोनों आरोपियों शशिभूषण शुक्ला और सुधीर अग्रवाल को आरोपी बताते हुए इनके विरुद्ध में क्रिमिनल धाराएं 419, 420, 465, 467, 468, 471, 16, 212, 217 & 120B इंगित करते हुए दिनांक 10-11-2014 एवं 22-11-2014 को निर्णय जारी करते किया और निर्देशित किया की स्थानीय पुलिस स्टेशन बलौदाबाजार में FIR दर्ज करने का आदेश दिया इसके पश्चात आरोपियों ने अपना प्रभाव दिखाकर तथा भ्रमित करने वाले चार अलग-अलग आवेदन देकर पुनरीक्षण केस को हाई कोर्ट बिलासपुर में दाखिल करवाया जिसमे हाई कोर्ट बिलासपुर ने तथाकथित तौर पर बिना तथ्यों की जाँच करते हुए FIR को निरस्त करने का आदेश नौ साल बाद दिनांक 09-08-2023 को कर दिया था।
हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है और मार्गदर्शक निर्णय देकर... संस्थागत मामलों के अपराधिक कृत्यों पर की जाने वाली पुलिस कार्यवाही पर विधिक प्रकाश डाला है....
आरोपियों के द्वारा हाई कोर्ट बिलासपुर के समक्ष क्रिमिनल (Criminal) केस को दीवानी (Civil) केस दिखाकर निरस्त करवा लिया गया था लेकिन SRM Spiritual Regenerartion Movement Foundation of India के प्राधिकारियों ने उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए क्राइम केस न:- 486 /2014 के संबंध में दिनांक 22-10-2024 को सुप्रीम कोर्ट से आदेश प्राप्त करके खारिज करवाया और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को दोबारा इस केस के तथ्यों को पुनः जाँच कर के क्रिमिनल केस की समूर्ण विवेचना करने का न्यायालयीन परामर्श दिलवा दिया है।
भ्रामक जानकारी के आधार पर आरोपियों ने प्राप्त किया विधि विरुद्ध लाभ
आरोपियों ने हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में 10 साल से लंबित मामले का सम्पूर्ण लाभ उठाते हुए लोकल पुलिस से इस केस की विवेचना एवं चार्जशीट किया है क्या यह लंबित चार्जशीट कार्यवाही से स्पष्ट होगा । उल्लेकनीय है कि आरोपियों के विरुद्ध ऐसे ही आपराधिक कृत्यों से मिलता जुलता केस भिलाई के व्यवसाई अजय अग्रवाल की कंपनी EBPL Ventures Pvt Ltd की FIR क्रमांक:- 0241/2024 दिनांक 07-03-2024 को सुपेला थाना भिलाई में दर्ज किया गया है जिसमे आरोपीगण शशिभूषण शुक्ला और सुधीर अग्रवाल के ऊपर धाराएं 420,467,468,471 & 120B के तहत जुर्म कायम हुआ था। इस केस में भी आरोपियों ने पुलिस और माननीय न्यायालय को गुमराह किए जाने का अभिलिखित आरोप लंबित है ।
भिलाई के सुपेला थाने और बलौदा बाजार पुलिस प्रकरण के आरोप-करीब-करीब एक जैसे हैं !
भिलाई और बलौदा बाजार के दोनो क्रिमिनल केसेस संबंधित जिला न्यायालय के समक्ष धारा 156(3) के तहत पेश किए गए थे जिस पर आवेदन का सम्पूर्ण संज्ञान लेते हुए जिला न्यायालय दुर्ग एवं जिला न्यायालय बलौदाबाजार के न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश के तहत FIR दर्ज की गयी थी। आरोपियों के पैसों के दवाव में और पहुँच के कारण दोनों क्रिमिनल केसेस में वकीलों से मिलकर एक भ्रामक कार्यप्रणाली अपनाते हुए दोनों केसेस में आरोपियों को जमानत मिल जाना जांच का विषय है एवं हाई कोर्ट से केसेस को रद्द (Quash) करवाने के तरीके को नियम विरुद्ध कार्य शैली से क्रियान्वन आरोपी करवाते आयें है। भिलाई वाले केस में भी वैसी ही कार्यप्रणाली अपनाते हुए आरोपियीं ने हाई कोर्ट में आवेदन दिया और पुलिस विभाग ने समापन रिपोर्ट (Closure report) देते हुए इन अर्रोपियों के केस को सिविल मामला बताते हुए क्रिमिनल FIR को ख़ारिज कर दिया।
क़ानूनी प्रक्रिया के प्रति सतर्क है भिलाई का शिकायतकर्ता पक्ष..!
भिलाई के व्यवसाई एवं शिकायतकर्ता अजय अग्रवाल को आरोपियों के शातिराना कार्य व्यवहार का अंदेशा पहले ही हो गया था इसलिए व्यवसाई अजय अग्रवाल ने पहले ही माननीय CGM कोर्ट दुर्ग में आवेदन देकर पुलिस की समापन रिपोर्ट को गलत इंगित करते हुए माननीय CGM कोर्ट में दरख़ास्त एवं तर्क संगत दस्तावेजीक प्रमाण नियमानुसार जमा कर दिए है परिमाण स्वरूप सुनवाई अभी जारी है।
क्या हाई कोर्ट छत्तीसगढ़ के समक्ष अपूर्ण व भ्रामक जानकारी देते हैं आरोपी ?
भिलाई और बलौदा बाजार दोनों प्रकरणों से यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि जिला न्यायालय के न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश को चुनौती देकर आरोपीगण हाई कोर्ट से अपना बचाव कर लेते है परन्तु यह भी बढ़ी अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट आरोपियों की शातिर कार्य शैली को विधिक तथ्यों के आधार पर समझतें हुए न्यायहित का संरक्षण कर हाई कोर्ट के फैसले को पलट देती है एवं जिला कोर्ट में धारा 156(3) के तहत हुए आदेश को संज्ञान लेते हुए सलाह देती है की सम्पूर्ण जाँच कर केस की गहराई तक जाँच एवं विवेचना कर के आरोपियों पर केस तय करे जबतक आरोपियों को गिरफ्तार से छुट दी गई है ।
सुप्रीम कोर्ट अनुभव एवं बुद्धिमता के आधार पर क़ानूनी विसंगतियों एवं सुनियोजित और बनावटी गड़बड़ियों को पकड़ लेता है |
अन्तोत्गतवा इस लेख का सारभूत विषय यह है कि लंबी क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग कर समाज के वैभवशाली एवं रसूक वाले लोग आपराधिक कार्य करते है और अपने ऊपर कार्यवाही भी नहीं होने देते है लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट में होता है तो अनुभवी न्यायालय न्यायहित सुनिश्चित करवाने वाली कार्यवाही करता है ।
धोखाधड़ी और भ्रमित करने वाली जानकारी देकर आरोपी जवाबदेही से आखिर कब तक बचेंगे..?
आरोपी शशिभूषण शुक्ला और सुधीर अग्रवाल के साथ NUVOCO कंपनी के उच्च अधिकारी अमित पीडीया जैसे छत्तीसगढ़ में कंपनी जगत से जुड़े बड़े नाम चर्चा में आ गए है क्योंकि DHPPL के डायरेक्टर अजय अग्रवाल द्वारा धोखाधड़ी, कुटरचना, छलरचित दस्तावेज बनाने के षड्यंत्र पूर्वक कार्याचरण की शिकायत पर माननीय न्यायालय ने आरोपियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के आदेश मार्दिच 2024 को दिए है….
व्यथित व्यवसाई के अधिवक्ता गण आरोपियों के द्वारा परिवाद कार्यवाही में भ्रम उत्पन्न करने वाले दांव-पेंच के विरुद्ध तथ्य पूर्ण क़ानूनी स्पष्टीकरण दे रहें है
ज्वाइंट वेंचर्स से निर्मित संयुक्त उपक्रम वाली कंपनी DHPPL के प्रति अपराधिक कृत्य करने वाले आरोपियों के विरुद्ध भिलाई के व्यवसाई की शिकायत अक्रटूबर 2022 में की जिस पर पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने से व्यथित व्यवसाई ने आरोपियों के विरुद्ध जिला न्यायालय दुर्ग के न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी दुर्ग के समक्ष जनवरी 2023 में अपने अधिवक्ता सोहन शर्मा एवं सुदेश पेटे के माध्यम से पेश किया जिस पर संज्ञान लेकर माननीय न्यायालय ने न्याय सम्मत आदेश देकर आरोपियों के विरुद्ध मार्च 2024 फआईआर दर्ज करने का निर्णय लिया है ।
यह लेख, विधि व्यवसाईयों लिए कंपनी मामलों का विश्लेषण करता है …
ज्वाइंट वेंचर्स से निर्मित संयुक्त उपक्रम वाली कंपनी DHPPL के प्रति अपराधिक कृत्य करने वाले आरोपियों के द्वारा न्यायालयीन कार्यवाहियों में कोई गए सुनियोजित एवं अनियमित कार्य शैली को उजागर करता है इसलिए अगर आप भी कंपनी मामलों के विधिक पहलुओं को जानना चाहते है तो यह लेख… कंपनी मामलों के विधिक पहलुओं पर प्रकाश डालने वाला हैं….
सामान्य दृष्टिकोण से आरोप क्या है ? इस पर थोडा प्रकाश डालते हैं |
आरोपी पक्षकारो के विरुद्ध ये आरोप हैं कि उन्होंने DURGA HITECH PROJECTs PVT. LTD. COMPANY की बैलेंसशीट में संचय (reserves) कि हुई राशि रु 1,82,44,593 को हड़पने के उद्देश्य से फर्जी ट्रको की परिवहन बिल की कूट रचना करके षड्यंत्र पूर्वक उक्त राशि को आरोपी की कंपनी (DURGA CARRERS PVT. LTD) के बैंक खाते में रकम अनियमित कार्य व्यवहार कर बैंक ट्रांसफर कर दिया गया है।
शिकायत अनुसार आरोपित गबन राशि को आरोपी ने कैसे खाताबही में ट्रांसफ़र किया गया था ? जान लीजिए !
छल और कुट रचित परिवहन बिल लगाकर आरोपित गबन राशि आरोपियों द्वारा कपट पूर्वक कार्य व्यवहार कर आहरित की गई | गौरतलब रहे कि, लगभग 24,000 ट्रको की ट्रिप में कंस्ट्र्रक्शन साइट का कचरा ढुलाई का बिल तथाकथित तौर पर लगाया गया, जिसमे मुख्यतः रेलपांत के टूटे हुए टुकड़े होने का विवरण दिया हुआ है |
व्यवसायिक दृष्टिकोण से तर्क संगत क्यों नही माना जा सकता है “यह बिल” ?
एक ट्रक की भार-क्षमता अगर 10 टन भी होती है, तो 24,000 ट्रको के कुल स्केप का भार (टनऐज) लगभग 2,40,000 टन होगा | इस लौह-स्क्रैप का बाजार मूल्य 30,000 रु टन के हिसाब से अनुमानित 720 करोड़ होना चाहिए | तर्क है की : गौरतलब रहे कि, कुल 26 km नई रेल-लाइन बिछाने का L&T कंपनी द्वारा दिया गया ठेके का मूल्य 70 करोड़ रु था तो 720 करोड़ का स्क्रैप मूल्य कैसे हो सकता है ?
उत्पादन मानकों के अनुसार खाता बही में दर्शित लोहे की मात्र कितनी होनी चाहिए !
सम्पूर्ण 26 KM नई रेललाइन मैं रेलपांत की कुल मात्रा 26 X 2 =52 KM (52,000m) की होती हैं | 1 मीटर रेलपांत का वजन 60 किलो प्रति मीटर (60kg/m) होता है, जो भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau Of Indian Standards) द्वारा प्रमाणित है और पूरे भारतवर्ष में इसी मानक के आधार पर रेलपांत का उत्पादन बड़ी इस्पात उद्योग कंपनियों जैसे कि भिलाई स्टील प्लांट, जिंदल स्टील प्लांट इत्यादि करती है।
खाता बही में किए गए गबन अनुसार परिवहन किए गए स्क्रैप का बाजार मूल्य पूरी कहानी बयां करता है !
उपरोक्त 52000 मीटर को 60 किलोग्राम प्रति मीटर से गुना करेंगे तो कुल वजन 31,20,000 किलोग्राम आता है जो कि अगर मीट्रिक टन में बदले तो यह वजन 3120 मीट्रिक टन होता है (क्योंकि एक मीट्रिक टन मतलब 1000 किलोग्राम होता हैं |) इस 3120 मीट्रिक टन की नई रेलपांत का बाजार मूल्य रू 70,000 प्रति टन हैं l
जिससे पूरी रेल लाइन का कार्य करने में संपूर्ण रेलपांत का वजन 3120 मीट्रिकटन X रु 70000 /- टन= रू 21,84,00,000 (लगभग 22 करोड़ करोड़)
तर्क : इतनी बड़ी राशि के मूल्य 720 करोड़ का लोहा स्क्रैप कहां है ? किसके गोदाम में रखा गया है ?
आरोपिगणों ने लौह स्क्रैप की मात्रा को 24000 ट्रैकों की ट्रिप से परिवहन करना दर्शाया है, जो की अत्यंत ज्यादा प्रतीत होता है इसलिए मनगढ़ंत है चुंकि 24000 ट्रैकों की ट्रिप X 10 टन = 2,40,000 मीट्रिक टन का लौहस्क्रैप के उत्पन्न होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठाता है। इसलिए ऊपर दी गई गणना से स्पष्ट होता है कि यह की आरोपियों ने फर्जी ट्रांसपोर्टेशन बिल बना कर उसका समायोजन (कुल योग ) अनियमित तरीके से धोखा देने की नियत से षडयंत्र पूर्वक करके पैसा हड़पने की साजिश साफ स्पष्ट दिखाई देती है।
समयावधि के दृष्टिकोण से भी समायोजित परिवहन बिल राशि फर्जी है होना दर्कशित करती है ।
गौर तलब रहे की L & T कंपनी का 70 करोड़ का कार्य, 19 सितंबर 2014 में समाप्त हो चुका था, जिसका कार्यपूर्णता प्रमाणपत्र L & T कंपनी में जून 2015 में जारी कर दिया था, जब कार्य 2014 में संपूर्ण हो चुका था तो 2017, 2018 और 2019 में रेलपाथ के टूटे टकड़े वो भी 2,40,000 टन पूर्णतः मन घडंत है और सिर्फ DHPPL कंपनी के बैलेंससीट में बची हुई राशि को हड़पने की साजिश एवं रणनीति थी | जिसे परिवाद में किए गए आरोपों अनुसार अंजाम दिया गया है क्योंकि सामान्य धारणा के अनुसार रेलवे का सम्पूर्ण कार्य समाप्त होने का तात्पर्य यही हैं कि कंस्ट्रक्शन साइट पर कोई भी स्क्रैप कचरा शेष नहीं हैं, उसके बाद ही मालगाड़ी बिजली इंजन (ELECTRICAL LOCO) से आवागमन कर पाती हैं |
ठेका कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र जारी करने के बाद परिवहन बिल ! कैसे संभव है ?
रेललाइन बिछाने एवं सिविल वर्क का कार्य L & T कंपनी के द्वारा DHPPL कंपनी को सन 2010 में दिया गया था इसलिए DHPPL कंपनी की सारी जिम्मेदारी L & T कंपनी के कर्य समाप्त करने के बाद खत्म हो जाती है। इससे यह साफ स्पष्ट होता है कि कूटरचित परिवहन बिल बनाने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ 1,82,44,593 रु हड़प करने का षड्यंत्र जिसमें NUVOCO कंपनी के उच्च अधिकारी श्रीमान अमित पीडीहा (Amit Pidiha) को भी आरोपियों ने अपने इस षड्यंत्र में सम्मिलित कर लिया जिसके कारण उन्होंने कचरा ( रेलपाथ के टुकड़े ) का कार्य ( जो हुआ ही नहीं है ) को सत्यापित करते हुए आरोपियों के षड्यंत्र में भागीदार बन गये। NUVOCO कंपनी के MD को रजिस्टर्ड ऑफिस मुंबई में लीगल नोटिस और पत्राचार करके EBPL VENTURES PVT LTD के डायरेक्टर अजय अग्रवाल ने स्पष्टीकरण मांगा जिसका गोल-मोल जवाब दिया गया जो सत्य से परे था और गबन राशी के विषय में अनभिज्ञता जाहिर की गई तथा 720 करोड़ के स्क्रैप के बारे हमें कुछ भी मालूम नहीं है कहा गया |
कंपनी सीए को आरोपी बनाए जाने का आधार भी तर्क संगत है !
इस बात से पूणतः स्पष्ट है कि 1,82 44,593 रु निकालने के लिए आरोपियों ने कूटरचित बिल दस्तावेजो बनाते हुए धोखाधड़ी करते हुए 50% पार्टनरशीप कंपनी EBPL VENTURES PVT. LTD. को हानि पहुंचाई हैं, इस कूटरचित बिल दस्तावेजों को बना कर सन 2019-20 की ऑडिट रिपोर्ट में अनियमित कार्य व्यवहार से नियुक्त नए चार्टेड-अकॉउंटेट नीरज बेध रायपुर से दस्तावेज को प्रमाणित करवा लिया | नए ऑडिटर नीरज बेध की नियुक्ति पुराने ऑडिटर के बिना NOC के एवं 50% पार्टनरशीप कंपनी EBPL VENTURES PVT. LTD. के बिना अनुमति के DURGA HITECH PROJECTs PVT. LTD. COMPANY में ऑडिटर बना कर कूटरचित बिल दस्तावेज को सही करवा कर MCA (MINISTRY OF CORPORATE AFFAIRS) की सरकारी वेबसाइट में अपलोड कर दिया गया था जिसे डाउनलोड करके 50% पार्टनरशीप कंपनी EBPL VENTURES PVT. LTD ने संज्ञान लिया और सुपेला थाने में OCT’ 2022 को शिकायत दर्ज करवाई |
अपराधिक व्यवसायिक गतिविधि जो की खाताबाही में किए गए गबन आरोप आधारित है इस अपराध पर की गई अनियमित पुलिस कार्यवाही का विधिक आधार क्या है ?
पुलिस थाना सुपेला के द्वारा पुलिस शिकायत पर करवाई नहीं करने के पश्चात JAN’ 2023 में न्यायिक दण्डाधिकारी (JMFC) कोर्ट दुर्ग में धारा 156(3) के तहत याचिका दायर करके माननीय न्यायालय में 4 march 2024 को याचिका को सही पाते हुए आदेश पारित किया कि 6 आरोपियों पर FIR करते हुए धारा 420, 467,468,471 &120B के तहत मामला दर्ज़ किये जावें | ऐसा विधि सम्मत आदेश पारित किया गया है ।
धोखाधड़ी कुटरचना छलरचित दस्तावेज जैसे गंभीर और पुलिस संज्ञान के अपराध की शिकायत पर लंबित है मामला !
कंपनी अपराध के आरोप को विधि द्वारा किस धारा में परिभाषित किया गया है और माननीय न्यायालय द्वारा धारा 420,467,468 & 120B लगाते हुए धोखाधड़ी कुटरचना छलरचित दस्तावेज बनाते हुए षड़यंत्र पूर्वक सभी 6 अरोपियों ने मिल कर 1,82,44,593 रु हड़पने के उद्देश्य से अपराधिक कार्य को अंजाम दिया गया है वर्तमान में यह पुलिस के जांच का विषय है ।
न्यायालयीन कार्यवाही में आरोपी अपना पक्ष प्रस्तुत करने में कैसे कठिनाई महसूस करेंगे ?
न्यायालय में आरोपियों को अपना पक्ष रखने में दिक्कत होने का कारण ये है कि कुटरचित एवं छलरचित दस्तावेजों को बनाने के बाद अब उसमे कोई भी सुधार की गुंजाईश नहीं है | तथा कथित तौर पर उठाये गया कचरा (लौह स्केप) का परिवहन बिल जो आरोपी प्रस्तुत कर रहे हैं उस स्केप का बिक्री मूल्य जो कि लगभग 700 करोड़ रु से ज्यादा होता है, उस पैसे का आरोपियों ने कहाँ उपयोग किया और पैसे किस बैंक खाते में आये तथा किस पार्टी को स्क्रैप बेचा गया | जैसे सवालों का जब आरोपी पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की विधिक बाध्यता वर्तमान में बनी हुई है ।
शशिभूषण शुक्ला और सुधीर अग्रवाल कंपनी से त्यागपत्र देकर क्या अपने कर्मचारियों को गबन का आरोपी साबित कर बच जायेंगे ?
इस आपरधिक कार्य करने के पूर्व में DHPPL (DURGA HITECH PROJECTs PVT. LTD.) के दो डायरेक्टर एवं अरोपीगण (शशिभूषण शुक्ला और सुधीर अग्रवाल ) ने सत्र JAN 2019 में त्यागपत्र देकर कंपनी DHPPL में अपने तीन मुलाजिमों को कंपनी DHPPL में नये डायरेक्टर के रूप में नियुक्त कर दिया जिसमें 50% पार्टनरशिप कंपनी EBPL VENTURES PVT. LTD के डायरेक्टर से कोई सहमति नहीं ली गई |
आरोपी गण पुलिस जाँच में गलत बयां कर रहें है और कोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिश कर रहें है |
उक्त कंपनी मामलों का विश्लेषण होगा जैसे की DHPPL (DURGA HITECH PROJECT PVT. LTD.) की 50% पार्टनरशिप EBPL VENTURES PVT. LTD ने कंपनी DHPPL में उत्पीड़न एवं क्रुप्रबंधन होने के कारण NCLT नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल कटक में OCT 2022 में याचिका दायर कर DHPPL के प्रबंधन में अनियमितताओं को उजागर करते हुए माननीय ट्रिब्यूनल से संज्ञान लेने की गुजारिश की, जिसमें माननीय ट्रिब्यूनल का निर्णय अभी लंबित हैं |
जुलाई 2024 में हाई कोर्ट बिलासपुर ने आरोपी गण की FIR रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया था क्योकि पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी, जिसके विरुद्ध शिकायतकर्ता ने पुलिस द्वारा शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं किये जाने के कारण तत्पश्यत जारी की गई क्लोजर रिपोर्ट के विरुद्माध ननीय CJM कोर्ट में अपनी आपत्ति दर्ज करवाई थी जिस पर सुनवाई चल रहीं है ?
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नोट : उक्त मामले में निजी तौर पर तृतीय पक्षकार के तौर पर सामाजिक कार्यकर्ता अमोल मालूसरे हैं ने एक नोटिस आरोपियों से वस्तुस्थिति जानने के लिए दी है जिसका विवरण इस लिंक पर है 👇👇👇
https://meradrushtikon.blogspot.com/2024/06/blog-post.html