पार्षद महोदय ! आपकी शक्तियों को पहचान लीजिये और आपने वार्ड के मतदाताओं की अपेक्षा को पूरा करने के लिए निगम अधिनियम को जान लीजिये - सुलभ सन्दर्भ के लिए इस पेज पर पूरी जानकारी है
जब निगम पार्षद अपनी शक्तियों को पहचान लेंगे तब आयुक्त मनमानी नहीं कर पायेगा गौरतलब रहे कि, पार्षदों के विफल होने और वार्ड की समस्याओं का निराकरण नहीं होने के कारणों को जानने के लिए जब मतदाता और पत्रकार पार्षदों से संपर्क करते है तो अक्सर पार्षद यहीं कहते है की निगम आयुक्त उनके वार्ड की मांगों को महत्त्व नहीं दे रहा है इसलिए पार्षद अपनी पदेन जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पा रहे हैं लेकिन विफल पार्षदों का यह तथाकथित बहाना सही नहीं है क्योकि राज्य शासन ने पार्षदों को सशक्त बनाने के लिए छ.ग. नगर पालिक निगम अधिनियम १९५६ बनाया है और इस अधिनियम में वार्ड पार्षद को सक्षम बनाने के लिए पर्याप्त प्रावधान किये है जिनके आधार पर एक जागरुक और कर्तव्य निष्ठ पार्षद निगम आयुक्त को मनमानी करने से रोक सकता हैं उल्लेखनीय है कि, राज्य शासन द्वारा प्रदत अधिकारों का प्रयोग तभी संभव होगा जब पार्षद नगर पालिक अधिनियम के अंतर्गत आयोजित सम्मिलानो में पार्षदों की भूमिका और पार्षदों के अधिकारों को स्वयं पार्षद समझ जायेगा क्योकि राज्य शासन ने कानून बनाकर पार्षद का प्राधिकार और शक्तियों को स्पष्ट कर दिया है और इस अधिनियम की किताब नगर निगम ने सभी पार्षदों को उपलब्ध करवा दी है | जिससे अब यह स्पष्ट हो गया है कि, निगम कार्यवाहियों में अब पार्षदों का वर्चस्व बना रहेगा | पार्षद अब अपने अधिकारो का प्रयोग सांसद और विधायको की तरह निगम सम्मिलानो में प्रश्न पूछकर करेंगे |
जानिए क्या कहता है नियम :-
Ø आयुक्त अपने अधिनस्त अधिकारियो को बाध्य करेगा की वे पार्षदों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों से संबंधित दस्तावेजो का अवलोकन निगम सम्मिलन से दो दिवस पूर्व पार्षद को करवाएं
Ø आयुक्त यह भी सुनिश्चित करेगा की निगम सम्मिलन के उपरांत पार्षदों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर उन्हें लिखित में मिले |
ऊपर की लिंक पर क्लिक करके जानिए अगर किसी पार्षद को अपने वार्ड और अपने मतदाताओं के लिए कुछ करना है तो उसे क्या करना चाहिए ?