पार्षदों के कर्तव्य - छ.ग. नगर पालिक निगम अधिनियम १९५६ की धारा २५-क में परिभाषित किये गए है और इस विधि निर्देश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि, पार्षद निगम सम्मिलन में भाग लेकर महापौर या आयुक्त का ध्यान... निगम की सम्पत्ति की किसी हानी या... निगम के किसी योजना या.... सेवा में किसी कमी के तरफ ध्यानान्कर्षण करवायेगा
छ.ग. नगर पालिक निगम अधिनियम १९५६ की धारा २५-क में पार्षदों के कर्तव्य को स्पष्ट करते हुए लेख किया गया है कि, अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए प्रत्येक पार्षद के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे:-
(एक) निगम के सम्मिलन में उपस्थित होना तथा उसमे भाग लेना तथा आवश्यकता होने पर मत देना |
(दो) महापौर या आयुक्त का ध्यान निगम की सम्पत्ति की किसी हानी या निगम के किसी योजना या सेवा में किसी कमी या निगम द्वारा निष्पादित किए जा रहे किसी कार्य की ओर आकर्षित करना |
मेरा दृष्टिकोण है कि, उपरोक्तानुसार निगम अधिनियम का स्पष्ट विधि निर्देश है कि, पार्षद निगम सम्मिलन में भाग लेकर महापौर या आयुक्त का ध्यान निगम की सम्पत्ति की किसी हानी या निगम के किसी योजना या सेवा में किसी कमी को प्रश्नांकित करके अपना पदेन कर्तव्य पूरा करें और निगम अधिनियम से पार्षद को प्राप्त प्राधिकार का प्रयोग करके अपने वार्ड और नगर निगम को होने वाली हानी पर अंकुश लगाये |
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निगम पार्षद को विधि द्वारा प्रदात सबसे महत्वपूर्ण प्राधिकार निगम के दस्तावेजों का निरिक्षण करने का होता है जिसके आधार पर पार्षद निगम से संबंधित किसी भी अभिलेख / दस्तावेज / फाइल आदि का निरिक्षण कर सकता है पढियें क्या कहता है छ,ग. नगरपालिक (कामकाज के संचालन की प्रक्रिया ) नियम २०१६ नियम ६ :-