महापौर की मनमानी और एकाधिकार पर अंकुश लगाने के लिए... एक जागरूक और निगम अधिनियम का जानकर पार्षद निगम की आम सभा में अपनी अहम भूमिका निभा सकता है... क्योंकि पार्षद के पास है अचूक विधि निर्देश जिसका नाम है छ,ग. नगरपालिक (कामकाज के संचालन की प्रक्रिया ) नियम २०१६ नियम ३. कार्यसूची इसको पढ़ लीजिये
नगरपालिका के सम्मिलन के लिए सुचना में सम्मिलित की जाने वाली कार्यसूची निम्नानुसार होगी,-
क) पूर्ववर्ती सम्मिलन के कार्यवृत्त की पुष्टि करना, यदि उसकी पुष्टि उस सम्मिलन में न हुई हो;
ख) पार्षदों द्वारा पूछे गये प्रश्न तथा उनके उत्तर;
ग) महत्त्वपूर्ण पत्र व्यवहार के संबंध में जानकारी ;
घ) कार्यसूची के शेष कामकाज जो पूर्ववर्ती सम्मिलन में संपादित न किये जा सके हों;
ङ) समितियों या मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा प्रस्तुत सुझाव तथा प्रस्ताव;
च) पार्षदों द्वारा लोक महत्त्व के विषयों पर व्यक्तव्य देने के लिए प्रस्तुत प्रस्ताव :-
परन्तु यह कि किसी विशेष सम्मिलन में सुचना में विनिर्दिष्ट कमाक्ज के सिवाय कोई अन्य कामकाज संपादित नहीं किया जाएगा:
परन्तु यह और कि लोक महत्त्व के विषयों पर व्यक्तव्य देने के लिए प्रस्तुत प्रस्ताव केवल साधारण सम्मिलन में ही रखा जायेगा |
पार्षद का व्यक्तित्व निगम सम्मिलन में उजागर हो जाता है मेरा दृष्टिकोण है कि, किसी भी पार्षद को अपना राजनैतिक महत्त्व और प्रशासकीय कार्यवाहियों की जानकारी रखने की पहचान निगम आम सभा में स्थापित करने का बेहतरीन अवसर होता है इसके लिए पार्षद को चाहिए की निगम सभागार में सम्मिलन के दौरान कार्यसूची के संबंध में की जाने वाली कार्यवाहियों पर उक्त उल्लेखित विधि निर्देशित दृष्टिकोण से विचारण करना चाहिए और अपने विवेक के आधार पर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की निगम कार्यवाहियां नियमानुसार संचालित की जा रहीं हैं अथवा नहीं की जा रही है |
पार्षद सचेत रहे निगम कार्यवाहियों के दौरान पार्षद को सचेत रहना चाहिए क्योकि अक्सर देखने में आता है की निगम सम्मिलन की कार्यवाहियों में सम्मिलन की कार्यसूची पर विधि निर्देशित कार्यवाहियां नहीं होतीं है इसलिए महापौर और निगम आयुक्त साठ-गाठ करके निगम कार्यवाहियों की कई गड़बड़ियों को बड़ी आसानी से दबा लेते हैं |
जागरुक पार्षद की जरुरत है जागरुक पार्षद समील्लन की कार्यसूची में की गई अनियमित गतिविधियों को विधिक जानकारी के आभाव के कारण सम्मिलन के दौरान उजागर नहीं कर पाते हैं उल्लेखनीय है की पार्षद द्वारा आपत्ति करने वाले युक्तियुक्त समय पर निगम सम्मिलन की गड़बड़ियों को प्रश्नांकित नहीं किये जाने का फायदा उठाकर निगम आयुक्त के अनियमित कार्यव्यवहार को महापौर का अवैधानिक संरक्षण मिल जाता है और पार्षद अपनी आपत्ति दर्ज करवाने से चुक जाते है गौर तलब रहे की जानकारी के आभाव में पार्षद अपनी निर्णायक भूमिका निगम सम्मिलन में निभा नहीं पाते है इसलिए विगत कई वर्षों से निगम को अपूर्णीय क्षति हो रही है |
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नगर निगम से संबंधित जानकारी हासिल करने के लिए निगम पार्षद को जिस नियम का अनुपालन करके वांछित जानकारी हासिल करने होती है उसका सविस्तार उल्लेखन छ,ग. नगरपालिक (कामकाज के संचालन की प्रक्रिया ) नियम २०१६ नियम १७ में किया गया है पढ़िए क्या कहता है यह नियम